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Index Search for        'आन्तरीक्षं'
Sutra: तत्रआन्तरीक्षं चतुर्विधम्। तद्यथा- धारं, कारं, तौषारं, हैममिति। तेषां धारं प्रधानं, लघुत्वात्। तत् पुनर्द्विविधं- गाङ्गं सामुद्रं चेति। तत्र गाङ्गमाश्वयुजे मासि प्रायशो वर्षति। तयोर्द्वयोरपि परीक्षणं कुर्वीत्- शाल्योदनपिण्डमकुथितमविदग्धं रजतभाजनोपहितं वर्षति देवे बहिष्कुर्वीत्, स यदि मुहूर्तं स्थितस्तादृश एव भवति तदा गाङ्गं पततीत्यवगन्तव्यं; वर्णान्यत्वे सिक्थप्रक्लेदे च सामुद्रमिति विद्यात्; तन्नोपादेयम्। सामुद्रमप्याश्वयुजे मासि गृहीतं गाङ्गवद्भवति। गाङ्गं पुनः प्रधानं, तदुपाददीताश्वयुजे मासि
Reference:1.1.45.7.0(पूर्व>सूत्र>द्रवद्रव्यविधिम्>सूत्र#7.0)
Tantra:पूर्व
Sthana:सूत्र
Adhyaya:द्रवद्रव्यविधिम्
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