Index Search for 'अत्युष्णेऽतिस्विन्नेऽतिविद्धेऽज्ञैर्विस्रावितमतिप्रवर्तते;' |
Sutra: | अत्युष्णेऽतिस्विन्नेऽतिविद्धेऽज्ञैर्विस्रावितमतिप्रवर्तते; तदतिप्रवृत्तं शिरोऽभितापमान्ध्यमधिमन्थतिमिरप्रादुर्भावं धातुक्षयमाक्षेपकं दाहं पक्षाघातमेकाङ्गविकारं हिक्कां श्वासकासौ पाण्डुरोगं मरणं चापादयति॥ |
Reference: | 1.1.14.31.0(पूर्व>सूत्र>शोणितवर्णनीयम्>सूत्र#31.0) |
Tantra: | पूर्व |
Sthana: | सूत्र |
Adhyaya: | शोणितवर्णनीयम् |
Search other sources: | search this word on other online resources
|