Index Search for 'लोचने' |
Shloka: | किं नु खल्विदमित्युक्त्वा निर्बिभेदास्यलोचने । अक्रुध्यत्स तया विद्धे नेत्रे परममन्युमान् । ततः शर्यातिसैन्यस्य शकृन्मूत्रं समावृणोत् ॥ |
Reference: | 3.33.122.0.13(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>तीर्थयात्रापर्व>द्वाविंशत्यधिकशततमोऽध्यायः (122)>श्लोक#13) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | तीर्थयात्रापर्व |
Adhyaya: | द्वाविंशत्यधिकशततमोऽध्यायः (122) |
Akhyana: | |
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