Index Search for 'लोकोऽद्भुतरूपमग्र्यम्' |
Shloka: | मुखस्य वर्णो न विकल्पतेऽस्य चेलुश्च गात्राणि न चापि तस्य । सिंहोन्नतं चाप्यभिगर्जतोऽस्य शुश्रावलोकोऽद्भुतरूपमग्र्यम् ॥ |
Reference: | 3.31.18.0.6(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>कैरातपर्व>अष्टादशोऽध्यायः (18)>श्लोक#6) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | कैरातपर्व |
Adhyaya: | अष्टादशोऽध्यायः (18) |
Akhyana: | |
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