Index Search for 'लोकेऽमुष्मिन्पार्थिव' |
Shloka: | वामदेव उवाच - छन्दांसि वै मादृशं संवहन्तिलोकेऽमुष्मिन्पार्थिव यानि सन्ति । अस्मिंस्तु लोके मम यानमेतदस्मद्विधानामपरेषां च राजन् ॥ |
Reference: | 3.37.190.0.62(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>मार्कण्डेयसमस्यापर्व>नवत्यधिकशततमोऽध्यायः>श्लोक#62) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | मार्कण्डेयसमस्यापर्व |
Adhyaya: | नवत्यधिकशततमोऽध्यायः |
Akhyana: | |
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