Index Search for 'लोकेऽमुष्मिन्निहैव' |
Shloka: | काले मृदुर्यो भवति काले भवति दारुणः । स वै सुखमवाप्नोतिलोकेऽमुष्मिन्निहैव च ॥ |
Reference: | 3.31.29.0.23(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>कैरातपर्व>एकोनत्रिंशोऽध्यायः (29)>श्लोक#23) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | कैरातपर्व |
Adhyaya: | एकोनत्रिंशोऽध्यायः (29) |
Akhyana: | |
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