Index Search for 'लोकान्प्रतिज्ञया' |
Shloka: | निबोध च शुभां वाणीं यां प्रवक्ष्यामि तेऽनघ । न ब्राह्मणे परिभवः कर्तव्यस्ते कदाचन । ब्राह्मणो रुषितो हन्यादपिलोकान्प्रतिज्ञया ॥ |
Reference: | 3.37.189.0.18(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>मार्कण्डेयसमस्यापर्व>एकोनवत्यधिकशततमोऽध्यायः>श्लोक#18) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | मार्कण्डेयसमस्यापर्व |
Adhyaya: | एकोनवत्यधिकशततमोऽध्यायः |
Akhyana: | |
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