Index Search for 'लोकानुद्वर्तयन्निव' |
Shloka: | मुखजेनाग्निना क्रुद्धोलोकानुद्वर्तयन्निव । क्षणेन राजशार्दूल पुरेव कपिलः प्रभुः । सगरस्यात्मजान्क्रुद्धस्तदद्भुतमिवाभवत् ॥ |
Reference: | 3.37.195.0.25(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>मार्कण्डेयसमस्यापर्व>पञ्चनवत्यधिकशततमोऽध्यायः>श्लोक#25) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | मार्कण्डेयसमस्यापर्व |
Adhyaya: | पञ्चनवत्यधिकशततमोऽध्यायः |
Akhyana: | |
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