Index Search for 'लोकानात्मप्रभान्पश्यन्फल्गुनो' |
Shloka: | लोकानात्मप्रभान्पश्यन्फल्गुनो विस्मयान्वितः । पप्रच्छ मातलिं प्रीत्या स चाप्येनमुवाच ह ॥ |
Reference: | 3.32.43.0.34(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>इन्द्रलोकाभिगमनपर्व>त्रिचत्वारिंशोऽध्यायः (43)>श्लोक#34) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | इन्द्रलोकाभिगमनपर्व |
Adhyaya: | त्रिचत्वारिंशोऽध्यायः (43) |
Akhyana: | |
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