Index Search for 'लोकांश्च' |
Shloka: | प्रत्युवाच महेन्द्रस्तं प्रीतात्मा प्रहसन्निव । इह प्राप्तस्य किं कार्यमस्त्रैस्तव धनंजय । कामान्वृणीष्वलोकांश्च प्राप्तोऽसि परमां गतिम् ॥ |
Reference: | 3.31.38.0.39(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>कैरातपर्व>अष्टत्रिंशोऽध्यायः (38)>श्लोक#39) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | कैरातपर्व |
Adhyaya: | अष्टत्रिंशोऽध्यायः (38) |
Akhyana: | |
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