Index Search for 'लोकस्यानन्ददायकः' |
Shloka: | स गृहीत्वा पताकां तु यात्यग्रे राक्षसो ग्रहः । व्यापृतस्तु श्मशाने यो नित्यं रुद्रस्य वै सखा । पिङ्गलो नाम यक्षेन्द्रोलोकस्यानन्ददायकः ॥ |
Reference: | 3.37.221.0.22(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>मार्कण्डेयसमस्यापर्व>एकविंशत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः>श्लोक#22) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | मार्कण्डेयसमस्यापर्व |
Adhyaya: | एकविंशत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः |
Akhyana: | |
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