Index Search for 'लोकभयाच्चैव' |
Shloka: | देशकालौ तु संप्रेक्ष्य बलाबलमथात्मनः । नादेशकाले किंचित्स्याद्देशः कालः प्रतीक्ष्यते । तथालोकभयाच्चैव क्षन्तव्यमपराधिनः ॥ |
Reference: | 3.31.29.0.31(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>कैरातपर्व>एकोनत्रिंशोऽध्यायः (29)>श्लोक#31) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | कैरातपर्व |
Adhyaya: | एकोनत्रिंशोऽध्यायः (29) |
Akhyana: | |
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