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Shloka: | लाभो ममैष राजेन्द्र यद्वै पूजयती द्विजान् । आदेशे तव तिष्ठन्ती हितं कुर्यां नरोत्तम ॥ |
Reference: | 3.43.288.0.4(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>कुन्दलाहरणपर्व>अष्टाशीत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः>श्लोक#4) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | कुन्दलाहरणपर्व |
Adhyaya: | अष्टाशीत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः |
Akhyana: | |
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