Index Search for 'ललाटे' |
Shloka: | सुसंयताश्चापि जटा विभक्ता द्वैधीकृता भान्ति समाललाटे । कर्णौ च चित्रैरिव चक्रवालैः समावृतौ तस्य सुरूपवद्भिः ॥ |
Reference: | 3.33.112.0.9(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>तीर्थयात्रापर्व>द्वादशाधिकशततमोऽध्यायः (112)>श्लोक#9) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | तीर्थयात्रापर्व |
Adhyaya: | द्वादशाधिकशततमोऽध्यायः (112) |
Akhyana: | |
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