Index Search for 'लभेत' |
Shloka: | सावित्र्युवाच - हृतं पुरा मे श्वशुरस्य धीमतः स्वमेव राज्यं सलभेत पार्थिवः । जह्यात्स्वधर्मं न च मे गुरुर्यथा द्वितीयमेतं वरयामि ते वरम् ॥ |
Reference: | 3.42.281.0.31(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>द्रौपदीहरणपर्व>एकाशीत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः>श्लोक#31) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | द्रौपदीहरणपर्व |
Adhyaya: | एकाशीत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः |
Akhyana: | |
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