Index Search for 'लब्ध्वा' |
Shloka: | ये धर्ममेव प्रथमं चरन्ति धर्मेणलब्ध्वा च धनानि काले । दारानवाप्य क्रतुभिर्यजन्ते तेषामयं चैव परश्च लोकः ॥ |
Reference: | 3.37.181.0.37(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>मार्कण्डेयसमस्यापर्व>एकाशीत्यधिकशततमोऽध्यायः>श्लोक#37) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | मार्कण्डेयसमस्यापर्व |
Adhyaya: | एकाशीत्यधिकशततमोऽध्यायः |
Akhyana: | |
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