Index Search for 'लङ्कायाश्च्यावयामास' |
Shloka: | मार्कण्डेय उवाच - राक्षसस्तु वरं लब्ध्वा दशग्रीवो विशां पते ।लङ्कायाश्च्यावयामास युधि जित्वा धनेश्वरम् ॥ |
Reference: | 3.42.259.0.32(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>द्रौपदीहरणपर्व>एकोनषष्ट्यधिकद्विशततमोऽध्यायः>श्लोक#32) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | द्रौपदीहरणपर्व |
Adhyaya: | एकोनषष्ट्यधिकद्विशततमोऽध्यायः |
Akhyana: | |
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