Index Search for 'लघुना' |
Shloka: | स्यान्नु कर्म तथा युक्तं येन पुत्रशतं भवेत् । महतालघुना वापि कर्मणा दुष्करेण वा ॥ |
Reference: | 3.33.127.0.16(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>तीर्थयात्रापर्व>सप्तविंशत्यधिकशततमोऽध्यायः (127)>श्लोक#16) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | तीर्थयात्रापर्व |
Adhyaya: | सप्तविंशत्यधिकशततमोऽध्यायः (127) |
Akhyana: | |
Search other sources: | search this word on other online resources
|