Index Search for 'लक्ष्मणो' |
Shloka: | इत्युक्तोलक्ष्मणो भ्रात्रा गुरुवाक्यहिते रतः । प्रतस्थे रुचिरं गृह्य समार्गणगुणं धनुः । किष्किन्धाद्वारमासाद्य प्रविवेशानिवारितः ॥ |
Reference: | 3.42.266.0.12(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>द्रौपदीहरणपर्व>षट्षष्ट्यधिकद्विशततमोऽध्यायः>श्लोक#12) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | द्रौपदीहरणपर्व |
Adhyaya: | षट्षष्ट्यधिकद्विशततमोऽध्यायः |
Akhyana: | |
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