Index Search for 'त्रैलोक्यमव्यग्रो' |
Shloka: | स्कन्द उवाच - शाधि त्वमेवत्रैलोक्यमव्यग्रो विजये रतः । अहं ते किंकरः शक्र न ममेन्द्रत्वमीप्सितम् ॥ |
Reference: | 3.37.218.0.14(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>मार्कण्डेयसमस्यापर्व>अष्टादशाधिकद्विशततमोऽध्यायः>श्लोक#14) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | मार्कण्डेयसमस्यापर्व |
Adhyaya: | अष्टादशाधिकद्विशततमोऽध्यायः |
Akhyana: | |
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