Index Search for 'ज्ञात्वा' |
Shloka: | ज्ञात्वा प्रथमजं तं तु वह्नेराङ्गिरसं सुतम् । उपेत्य देवाः पप्रच्छुः कारणं तत्र भारत ॥ |
Reference: | 3.37.207.0.18(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>मार्कण्डेयसमस्यापर्व>सप्ताधिकद्विशततमोऽध्यायः>श्लोक#18) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | मार्कण्डेयसमस्यापर्व |
Adhyaya: | सप्ताधिकद्विशततमोऽध्यायः |
Akhyana: | |
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