Index Search for 'छिन्नः' |
Shloka: | मा विषीद नरव्याघ्र नैष कश्चिन्मयि स्थिते । छिन्ध्यस्य दक्षिणं बाहुंछिन्नः सव्यो मया भुजः ॥ |
Reference: | 3.42.263.0.32(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>द्रौपदीहरणपर्व>त्रिषष्ट्यधिकद्विशततमोऽध्यायः>श्लोक#32) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | द्रौपदीहरणपर्व |
Adhyaya: | त्रिषष्ट्यधिकद्विशततमोऽध्यायः |
Akhyana: | |
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