Index Search for 'छत्रं' |
Shloka: | पर्जन्यश्चाप्यनुययौ नमस्कृत्य पिनाकिनम् ।छत्रं तु पाण्डुरं सोमस्तस्य मूर्धन्यधारयत् । चामरे चापि वायुश्च गृहीत्वाग्निश्च विष्ठितौ ॥ |
Reference: | 3.37.221.0.18(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>मार्कण्डेयसमस्यापर्व>एकविंशत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः>श्लोक#18) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | मार्कण्डेयसमस्यापर्व |
Adhyaya: | एकविंशत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः |
Akhyana: | |
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