Index Search for 'घ्नन्ति' |
Shloka: | कृषिं साध्विति मन्यन्ते तत्र हिंसा परा स्मृता । कर्षन्तो लाङ्गलैः पुंसोघ्नन्ति भूमिशयान्बहून् । जीवानन्यांश्च बहुशस्तत्र किं प्रतिभाति ते ॥ |
Reference: | 3.37.199.0.19(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>मार्कण्डेयसमस्यापर्व>एकोनद्विशततमोऽध्यायः>श्लोक#19) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | मार्कण्डेयसमस्यापर्व |
Adhyaya: | एकोनद्विशततमोऽध्यायः |
Akhyana: | |
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