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Shloka: | ग्रामांश्चघोषांश्च सुतं च दृष्ट्वा शान्तां च शान्तोऽस्य परः स कोपः । चकार तस्मै परमं प्रसादं विभाण्डको भूमिपतेर्नरेन्द्र ॥ |
Reference: | 3.33.113.0.20(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>तीर्थयात्रापर्व>त्रयोदशाधिकशततमोऽध्यायः (113)>श्लोक#20) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | तीर्थयात्रापर्व |
Adhyaya: | त्रयोदशाधिकशततमोऽध्यायः (113) |
Akhyana: | |
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