Index Search for 'घोरे' |
Shloka: | मार्कण्डेय उवाच - शृणु राजन्निदं सर्वं यथावृत्तं नराधिप । एकार्णवे तदाघोरे नष्टे स्थावरजङ्गमे । प्रनष्टेषु च भूतेषु सर्वेषु भरतर्षभ ॥ |
Reference: | 3.37.194.0.8(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>मार्कण्डेयसमस्यापर्व>चतुर्नवत्यधिकशततमोऽध्यायः>श्लोक#8) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | मार्कण्डेयसमस्यापर्व |
Adhyaya: | चतुर्नवत्यधिकशततमोऽध्यायः |
Akhyana: | |
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