Index Search for 'घोरान्नादान्विमुञ्चन्तो' |
Shloka: | घोरान्नादान्विमुञ्चन्तो निपेतुर्धरणीतले । वृक्षेष्वासज्य संभग्नाः पतिता विषमेषु च । तथा तन्निहतं सर्वं समृद्धं सार्थमण्डलम् ॥ |
Reference: | 3.32.62.0.10(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>इन्द्रलोकाभिगमनपर्व>द्विषष्ठितमोऽध्यायः (62)>श्लोक#10) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | इन्द्रलोकाभिगमनपर्व |
Adhyaya: | द्विषष्ठितमोऽध्यायः (62) |
Akhyana: | |
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