Index Search for 'घोरपाशैर्ब्रह्मक्षत्रस्यान्तरे' |
Shloka: | वामदेव उवाच - प्रयच्छ वाम्यौ मम पार्थिव त्वं कृतं हि ते कार्यमन्यैरशक्यम् । मा त्वा वधीद्वरुणोघोरपाशैर्ब्रह्मक्षत्रस्यान्तरे वर्तमानः ॥ |
Reference: | 3.37.190.0.60(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>मार्कण्डेयसमस्यापर्व>नवत्यधिकशततमोऽध्यायः>श्लोक#60) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | मार्कण्डेयसमस्यापर्व |
Adhyaya: | नवत्यधिकशततमोऽध्यायः |
Akhyana: | |
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