Index Search for 'घनेन' |
Shloka: | सत्यवानुवाच - वनं प्रतिभयाकारंघनेन तमसा वृतम् । न विज्ञास्यसि पन्थानं गन्तुं चैव न शक्ष्यसि ॥ |
Reference: | 3.42.281.0.75(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>द्रौपदीहरणपर्व>एकाशीत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः>श्लोक#75) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | द्रौपदीहरणपर्व |
Adhyaya: | एकाशीत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः |
Akhyana: | |
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