Index Search for 'क्षेप्स्यते' |
Shloka: | स यत्काष्ठं तृणं वापि शिलां वाक्षेप्स्यते मयि । सर्वं तद्धारयिष्यामि स ते सेतुर्भविष्यति ॥ |
Reference: | 3.42.267.0.42(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>द्रौपदीहरणपर्व>सप्तषष्ट्यधिकद्विशततमोऽध्यायः>श्लोक#42) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | द्रौपदीहरणपर्व |
Adhyaya: | सप्तषष्ट्यधिकद्विशततमोऽध्यायः |
Akhyana: | |
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