Index Search for 'क्षेत्रज्ञं' |
Shloka: | प्रतर्दन उवाच - पृच्छामि त्वां स्पृहणीयरूप प्रतर्दनोऽहं यदि मे सन्ति लोकाः । यद्यन्तरिक्षे यदि वा दिवि श्रिताःक्षेत्रज्ञं त्वां तस्य धर्मस्य मन्ये ॥ |
Reference: | 1.7.87.3.13(आदिपर्व>संभवपर्व>सप्ताशीतितमोऽध्यायः (87)>उत्तरयायातम्>श्लोक#13) |
Parva: | आदिपर्व |
Upaparva: | संभवपर्व |
Adhyaya: | सप्ताशीतितमोऽध्यायः (87) |
Akhyana: | उत्तरयायातम् |
Search other sources: | search this word on other online resources
|