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Shloka: | अष्टक उवाच - पृच्छामि त्वां मा प्रपत प्रपातं यदि लोकाः पार्थिव सन्ति मेऽत्र । यद्यन्तरिक्षे यदि वा दिवि श्रिताःक्षेत्रज्ञं त्वां तस्य धर्मस्य मन्ये ॥ |
Reference: | 1.7.87.3.8(आदिपर्व>संभवपर्व>सप्ताशीतितमोऽध्यायः (87)>उत्तरयायातम्>श्लोक#8) |
Parva: | आदिपर्व |
Upaparva: | संभवपर्व |
Adhyaya: | सप्ताशीतितमोऽध्यायः (87) |
Akhyana: | उत्तरयायातम् |
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