Index Search for 'क्षिप्रमेवं' |
Shloka: | मार्कण्डेय उवाच - स तथेति प्रतिज्ञाय सावित्र्या वचनं नृपः । प्रसादयामास पुनःक्षिप्रमेवं भवेदिति ॥ |
Reference: | 3.42.277.0.19(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>द्रौपदीहरणपर्व>सप्तसप्तत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः>श्लोक#19) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | द्रौपदीहरणपर्व |
Adhyaya: | सप्तसप्तत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः |
Akhyana: | |
Search other sources: | search this word on other online resources
|