Index Search for 'क्षिप्रमेव' |
Shloka: | भरद्वाज उवाच - दर्पस्ते भविता तात वराँल्लब्ध्वा यथेप्सितान् । स दर्पपूर्णः कृपणःक्षिप्रमेव विनश्यसि ॥ |
Reference: | 3.33.136.0.2(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>तीर्थयात्रापर्व>षट्त्रिंशदधिकशततमोऽध्यायः (136)>श्लोक#2) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | तीर्थयात्रापर्व |
Adhyaya: | षट्त्रिंशदधिकशततमोऽध्यायः (136) |
Akhyana: | |
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