Index Search for 'क्षिप्रममित्रसाह' |
Shloka: | अष्टक उवाच - तांस्ते ददामि मा प्रपत प्रपातं ये मे लोका दिवि राजेन्द्र सन्ति । यद्यन्तरिक्षे यदि वा दिवि श्रितास्तानाक्रमक्षिप्रममित्रसाह ॥ |
Reference: | 1.7.87.3.10(आदिपर्व>संभवपर्व>सप्ताशीतितमोऽध्यायः (87)>उत्तरयायातम्>श्लोक#10) |
Parva: | आदिपर्व |
Upaparva: | संभवपर्व |
Adhyaya: | सप्ताशीतितमोऽध्यायः (87) |
Akhyana: | उत्तरयायातम् |
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