Index Search for 'क्षिप्रं' |
Shloka: | अधिरोहन्ति यं नित्यं पिशाचाः पुरुषं क्वचित् । उन्माद्यति स तुक्षिप्रं पैशाचं तं ग्रहं विदुः ॥ |
Reference: | 3.37.219.0.52(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>मार्कण्डेयसमस्यापर्व>एकोनविंशत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः>श्लोक#52) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | मार्कण्डेयसमस्यापर्व |
Adhyaya: | एकोनविंशत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः |
Akhyana: | |
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