Index Search for 'क्षिप्रं' |
Shloka: | यः पश्यति नरो देवाञ्जाग्रद्वा शयितोऽपि वा । उन्माद्यति स तुक्षिप्रं तं तु देवग्रहं विदुः ॥ |
Reference: | 3.37.219.0.46(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>मार्कण्डेयसमस्यापर्व>एकोनविंशत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः>श्लोक#46) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | मार्कण्डेयसमस्यापर्व |
Adhyaya: | एकोनविंशत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः |
Akhyana: | |
Search other sources: | search this word on other online resources
|