Index Search for 'क्षितौ' |
Shloka: | दहत् क्वचित् ज्वलन इव अवलेलिहत् प्रसह्य तान् असुरगणान् नि अकृन्तत । प्रवेरितम् वियति मुहुःक्षितौ तदा पपौ रणे रुधिरम् अथः पिशाचवत् ॥ |
Reference: | 1.5.17.0.23(आदिपर्व>आस्तीकपर्व>सप्तदशोऽध्यायः (17)>श्लोक#23) |
Parva: | आदिपर्व |
Upaparva: | आस्तीकपर्व |
Adhyaya: | सप्तदशोऽध्यायः (17) |
Akhyana: | |
Search other sources: | search this word on other online resources
|