Index Search for 'क्षामकण्ठश्च' |
Shloka: | तां पश्यमानो विजने स रेमे परमद्युतिः ।क्षामकण्ठश्च ब्रह्मर्षिस्तपोबलसमन्वितः । तामाबभाषे कल्याणीं सा चास्य न शृणोति वै ॥ |
Reference: | 3.33.122.0.11(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>तीर्थयात्रापर्व>द्वाविंशत्यधिकशततमोऽध्यायः (122)>श्लोक#11) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | तीर्थयात्रापर्व |
Adhyaya: | द्वाविंशत्यधिकशततमोऽध्यायः (122) |
Akhyana: | |
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