Index Search for 'क्षयं' |
Shloka: | समुद्रश्च यथा पीतः कारणार्थे महात्मना । वातापिश्च यथा नीतःक्षयं स ब्रह्महा प्रभो । अगस्त्येन महाराज यन्मां त्वं परिपृच्छसि ॥ |
Reference: | 3.33.108.0.19(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>तीर्थयात्रापर्व>अष्टाधिकशततमोऽध्यायः (108)>श्लोक#19) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | तीर्थयात्रापर्व |
Adhyaya: | अष्टाधिकशततमोऽध्यायः (108) |
Akhyana: | |
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