Index Search for 'क्षन्तुमर्हसि' |
Shloka: | अकार्यकरणाच्चापि भृशं मे व्यथितं मनः । अजानता कृतमिदं मयेत्यथ तमब्रुवम् ।क्षन्तुमर्हसि मे ब्रह्मन्निति चोक्तो मया मुनिः ॥ |
Reference: | 3.37.205.0.28(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>मार्कण्डेयसमस्यापर्व>पञ्चाधिकद्विशततमोऽध्यायः>श्लोक#28) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | मार्कण्डेयसमस्यापर्व |
Adhyaya: | पञ्चाधिकद्विशततमोऽध्यायः |
Akhyana: | |
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