Index Search for 'क्षत्रियान्कोपयिष्णुभिः' |
Shloka: | निखातं तद्धि वै वित्तं केनचिद्भृगुवेश्मनि । वैरायैव तदा न्यस्तंक्षत्रियान्कोपयिष्णुभिः । किं हि वित्तेन नः कार्यं स्वर्गेप्सूनां द्विजर्षभ ॥ |
Reference: | 1.11.170.6.17(आदिपर्व>चैत्ररथपर्व>सप्तत्यधिकशततमोऽध्यायः>और्वोपाख्यान>श्लोक#17) |
Parva: | आदिपर्व |
Upaparva: | चैत्ररथपर्व |
Adhyaya: | सप्तत्यधिकशततमोऽध्यायः |
Akhyana: | और्वोपाख्यान |
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