Index Search for 'क्षत्रियस्यैष' |
Shloka: | राजोवाच - चत्वारो वा गर्दभास्त्वां वहन्तु श्रेष्ठाश्वतर्यो हरयो वा तुरंगाः । तैस्त्वं याहिक्षत्रियस्यैष वाहो मम वाम्यौ न तवैतौ हि विद्धि ॥ |
Reference: | 3.37.190.0.63(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>मार्कण्डेयसमस्यापर्व>नवत्यधिकशततमोऽध्यायः>श्लोक#63) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | मार्कण्डेयसमस्यापर्व |
Adhyaya: | नवत्यधिकशततमोऽध्यायः |
Akhyana: | |
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