Index Search for 'क्षत्रस्य' |
Shloka: | धौम्य उवाच - नेयं शक्या त्वया नेतुमविजित्य महारथान् । धर्मंक्षत्रस्य पौराणमवेक्षस्व जयद्रथ ॥ |
Reference: | 3.42.252.0.25(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>द्रौपदीहरणपर्व>द्विपञ्चाशदधिकद्विशततमोऽध्यायः>श्लोक#25) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | द्रौपदीहरणपर्व |
Adhyaya: | द्विपञ्चाशदधिकद्विशततमोऽध्यायः |
Akhyana: | |
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