Index Search for 'ऐन्द्रद्युम्नेर्यज्ञदृशाविहावां' |
Shloka: | ऐन्द्रद्युम्नेर्यज्ञदृशाविहावां विवक्षू वै जनकेन्द्रं दिदृक्षू । न वै क्रोधाद्व्याधिनैवोत्तमेन संयोजय द्वारपाल क्षणेन ॥ |
Reference: | 3.33.133.0.4(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>तीर्थयात्रापर्व>त्रयस्त्रिंशदधिकशततमोऽध्यायः (133)>श्लोक#4) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | तीर्थयात्रापर्व |
Adhyaya: | त्रयस्त्रिंशदधिकशततमोऽध्यायः (133) |
Akhyana: | |
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