Index Search for 'एवमुक्तास्ततस्तेन' |
Shloka: | त्रिदशानां वचः श्रुत्वा मैत्रावरुणिरब्रवीत् । किमर्थमभियाताः स्थ वरं मत्तः किमिच्छथ ।एवमुक्तास्ततस्तेन देवास्तं मुनिमब्रुवन् ॥ |
Reference: | 3.33.102.0.16(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>तीर्थयात्रापर्व>द्वयधिकशततमोऽध्यायः (102)>श्लोक#16) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | तीर्थयात्रापर्व |
Adhyaya: | द्वयधिकशततमोऽध्यायः (102) |
Akhyana: | |
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