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Shloka: | एवमुक्तस्तु गन्धर्वः पाण्डवेन महात्मना । उवाच यत्कर्ण वयं मन्त्रयन्तो विनिर्गताः । द्रष्टारः स्म सुखाद्धीनान्सदारान्पाण्डवानिति ॥ |
Reference: | 3.39.238.0.3(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>घोषयात्रापर्व>अष्टत्रिंशदधिकद्विशततमोऽध्यायः>श्लोक#3) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | घोषयात्रापर्व |
Adhyaya: | अष्टत्रिंशदधिकद्विशततमोऽध्यायः |
Akhyana: | |
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