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Shloka: | वैशंपायन उवाच -एतावत् उक्त्वा वचनम् प्रातिष्ठत शकुन्तला । अथ अन्तरिक्षे दुःषन्तम् वाग् उवाच अशरीरिणी । ऋत्विक्-पुरोहित-आचार्यैः-मन्त्रिभिः च आवृतम् तदा ॥ |
Reference: | 1.7.69.1.28(आदिपर्व>संभवपर्व>एकोनसप्ततितमोऽध्यायः (69)>शकुन्तलोपाख्यान>श्लोक#28) |
Parva: | आदिपर्व |
Upaparva: | संभवपर्व |
Adhyaya: | एकोनसप्ततितमोऽध्यायः (69) |
Akhyana: | शकुन्तलोपाख्यान |
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