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Shloka: | मा वः प्रियायाः सुनसं सुलोचनं चन्द्रप्रभाच्छं वदनं प्रसन्नम् । स्पृश्याच्छुभं कश्चिदकृत्यकारी श्वा वै पुरोडाशमिवोपयुङ्क्षीत् ।एतानि वर्त्मान्यनुयात शीघ्रं मा वः कालः क्षिप्रमिहात्यगाद्वै ॥ |
Reference: | 3.42.253.0.20(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>द्रौपदीहरणपर्व>त्रिपञ्चाशदधिकद्विशततमोऽध्यायः>श्लोक#20) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | द्रौपदीहरणपर्व |
Adhyaya: | त्रिपञ्चाशदधिकद्विशततमोऽध्यायः |
Akhyana: | |
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