Index Search for 'ऋतुपर्ण' |
Shloka: | ऋतुपर्ण उवाच - वस बाहुक भद्रं ते सर्वमेतत्करिष्यसि । शीघ्रयाने सदा बुद्धिर्धीयते मे विशेषतः ॥ |
Reference: | 3.32.64.0.5(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>इन्द्रलोकाभिगमनपर्व>चतुःषष्ठितमोऽध्यायः (64)>श्लोक#5) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | इन्द्रलोकाभिगमनपर्व |
Adhyaya: | चतुःषष्ठितमोऽध्यायः (64) |
Akhyana: | |
Search other sources: | search this word on other online resources
|